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रामचरित मानस पर क्यों उठ रहे है विवाद, जानिए इससे जुड़े सभी तथ्य एक क्लिक में

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श्रीरामचरितमानस को लेकर पहले भी विवाद होता रहा है लेकिन वर्तमान में बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर और समाजवादी पार्टी के एमएलसी और उत्‍तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस पर विवादित बयान दिए हैं। हालांकि विवाद का कारण रामचरित मानस के कुछ चौपाई है, लेकिन इन चौपाई के अर्थ का अनर्थ करने और रामचरित मानस को समग्र रूप से नहीं समझने के कारण ही यह गलतफहमी उपजती रही है। आओ जानते हैं। इससे जुड़े तथ्य।
 

 

तुलसीदास गोस्वामी कृत रामचरितमानस का परिचय : रामचरित मानस को मुगल काल में श्री तुलसीदासजी ने लिखा था। यह ग्रंथ वाल्मीकि रामायण, आनंद रामायण और कबंद रामायण सहित कई रामायणों के अध्ययन पर आधारित अवधी भाषा में लिखा गया ग्रंथ है। इस ग्रंथ में 7 काण्‍ड है। बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड और उत्तरकाण्ड। हालांकि उत्तरकाण्ड को लेकर विवाद है। माना जाता है कि वाल्मीकि रामायण में यह बाद में जोड़ा गया तो मानस में भी यह बाद का काण्‍ड ही माना जाता है। जबकि वाल्मीकि रामायण लंकाकाण्ड पर समाप्त हो जाती है।

 

तुलसीदास गोस्वामी कृत रामचरितमानस का उत्तरकांड : इसमें मंगलाचरण, भरत विरह तथा भरत-हनुमान मिलन, अयोध्या में आनंद, श्री रामजी का स्वागत, भरत मिलाप, सबका मिलनानन्द, राम राज्याभिषेक, वेदस्तुति, शिवस्तुति, वानरों की और निषाद की विदाई, रामराज्य का वर्णन, पुत्रोत्पति, अयोध्याजी की रमणीयता, सनकादिका आगमन और संवाद, हनुमान्‌जी के द्वारा भरतजी का प्रश्न और श्री रामजी का उपदेश, श्री रामजी का प्रजा को उपदेश (श्री रामगीता), पुरवासियों की कृतज्ञता, श्री राम-वशिष्ठ संवाद, श्री रामजी का भाइयों सहित अमराई में जाना, नारदजी का आना और स्तुति करके ब्रह्मलोक को लौट जाना, शिव-पार्वती संवाद, गरुड़ मोह, गरुड़जी का काकभुशुण्डि से रामकथा और राम महिमा सुनना, काकभुशुण्डि का अपनी पूर्व जन्म कथा और कलि महिमा कहना, गुरुजी का अपमान एवं शिवजी के शाप की बात सुनना, रुद्राष्टक, गुरुजी का शिवजी से अपराध क्षमापन, शापानुग्रह और काकभुशुण्डि की आगे की कथा, काकभुशुण्डिजी का लोमशजी के पास जाना और शाप तथा अनुग्रह पाना, ज्ञान-भक्ति-निरुपण, ज्ञान-दीपक और भक्ति की महान्‌ महिमा, गरुड़जी के सात प्रश्न तथा काकभुशुण्डि के उत्तर, भजन महिमा, रामायण माहात्म्य, तुलसी विनय और फलस्तुति और रामायणजी की आरती का वर्णन मिलता है।

 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम : राम के चरित्र पर विवाद उठाने वाले वृहद रूप से श्रीराम को नहीं समझते हैं। श्रीराम यदि शास्त्रों के ज्ञाता प्रकाण्ड विद्वान और ब्राह्मण कुल के रावण और उसके संपूर्ण कुल को नष्ट कर देते हैं तो फिर शंबूक वध पर बवाल क्यों? क्या कोई यह जानने का प्रयास नहीं करता कि श्रीराम ने शबरी के झूठे बेर खाए थे और केवट को गले लागाकर अपना परम मित्र बनाया था। उन्होंने ही तो गिद्ध का अपने पिता के सामान श्राद्ध किया था। वे कोल, भील, किरात, आदिवासी, वनवासी, गिरीवासी, कपिश अन्य कई जातियों के साथ जंगल में रहे और उन्हीं के दम पर उन्होंने रावण को हराया भी था तब मात्र शंबूक वध पर आप कैसे यह मान सकते हैं कि उनमें जातिवादी भावना थी?

रामचरित मानस की विवादित चौपाई :

 

1. पहली चौपाई :

प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥

ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥- सुंदरकाण्ड

अर्थ:-प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा (दंड) दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं॥3॥- सुंदरकाण्ड

 

भावार्थ : इस प्रकार संपूर्ण चौपाई का अर्थ यह हुआ कि ढोलक, गवांर, वंचित, जानवर और नारी, यह पांच पूरी तरह से जानने के विषय हैं। इन्हें जानें बगैर इनके साथ व्यवहार करने से सभी का अहित होता है। ढोलक को अगर सही से नहीं बजाया जाय तो उससे कर्कश ध्वनि निकलती है। अतः ढोलक पूरी तरह से जानने या अध्ययन का विषय है। इसी तरह अनपढ़ व्यक्ति आपकी किसी बात का गलत अर्थ निकाल सकता है। अतः उसके बारे में अच्छी तरह से जानकर ही उसको कोई बात समझाना चाहिए। वंचित व्यक्ति को भी जानकर ही आप किसी कार्य में उसका सहयोग प्राप्त कर सकते हैं। अन्यथा कार्य की असफलता पर संदेह रहेगा। इसी प्रकार पशु हमारे किसी व्यवहार, आचरण, क्रियाकलाप या गतिविधि से भयभीत या आहत हो जाते हैं और न चाहते हुए भी  वे भयभीत होकर हमला कर सकते हैं। असुरक्षा का भाव उन्हें कुछ भी करने पर विवश कर सकता है। अतः पशु को भी भलीभांति जानकर ही उसके साथ व्यवहार करना चाहिए। इसी प्रकार जब तुलसीदासजी ने नारी शब्द का उपयोग किया तो वे भलिभांती जानते थे कि नारी मां, बहन और बेटी भी होती है। लेकिन लोग सिर्फ पत्नी के अर्थ में ही इसे लेते हैं। तुलसीदासजी यहां कहना चाहते हैं कि नारी की भावना को समझे बगैर उसके साथ आप जीवन यापन नहीं कर सकते। ऐसे में आपसी सूझबूझ काफी आवश्यक होती है।

 

कई विद्वान यह भी मानते हैं कि इस चौपाई में बदलाव किया है, यह प्रक्षेप है। असली चौपाई में शूद्र नहीं क्षुब्द है और नारी नहीं रारी है। यानी ढोल, गवार, क्षुब्द पशु, रारी है यह सब ताड़न का अधिकारी।

 

ढोल =  बेसुरा ढोलक 

गवार= गवांर व्यक्ति 

क्षुब्द पशु= आवारा पशु जो लोगों को कष्ट देते हैं। 

रार = कलह करने वाले लोग।

 

2. दूसरी चौपाई:

पूजहि विप्र सकल गुण हीना, 

पूजहि न शूद्र गुण ज्ञान प्रवीणा।।- 3/34/2

तुलसीदासजी की इस चौपाई का इस तरह गलत अर्थ निकाला जाता है- ब्राह्मण चाहे कितना भी ज्ञान गुण से रहित हो, उसकी पूजा करनी ही चाहिए, और शूद्र चाहे कितना भी गुणी ज्ञानी हो, वो सम्माननीय हो सकता है, लेकिन कभी पूजनीय नहीं हो सकता।।

 

इस चौपाई के अर्थ को समझने के लिए पहले समझना होगा कि विप्र कौन? तुलसीदासजी ने विप्र शब्द का प्रयोग किया है ब्राह्मण का नहीं। मनु स्मृति की निम्नलिखित चौपाई से विप्र का अर्थ समझेंगे-

 

जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत द्विजः।

वेद पाठात् भवेत् विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।।

अर्थात– व्यक्ति जन्मतः शूद्र है। संस्कार से वह द्विज बन सकता है। वेदों के पठन-पाठन से विप्र हो सकता है। किंतु जो ब्रह्म को जान ले, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।

 

सही अर्थ : यानी यदि विप्र अर्थात वेद-पठन करने वाला व्यक्ति और ब्रह्माण यानी ब्रह्म को जानवे वाला व्यक्ति। अब यदि विप्र ने भले ही उस सारे वेद ज्ञान को आत्मसात नहीं किया है, सारे गुणहीन हो लेकिन वह पढ़ा-लिखा है इसीलिए वह पूज्जनीय है। शुद्र वेद प्रवीणा का अर्थ हुआ ऐसा व्यक्ति जो सारी किताबे पढ़-पढ़ के प्रवचन बांचता रहता है उसका मर्म नहीं समझता है और वह उसका अर्थ नहीं जानता है। फिर भी वो उसका दम्भ करता है पांडित्य दिखाता रहता है। ऐसे लोग पूज्जनीय नहीं है।

 

दरअसल आजकल लोग जातिवाद के चलते चौपाई और श्लोकों के गलत अर्थ निकालने लगे हैं। उसके संदर्भ को काटकर वे उसके भाव को नहीं पकड़ते हैं। प्राचीनकाल के गुरु कुल में हर जाति और संप्रदाय का व्यक्ति पढ़कर उच्च बनता था। वेदों को लिखने वाले ब्रह्मण नहीं थे। वाल्मीकि रामायण किसी ब्राह्मण ने नहीं लिखी। महाभारत और पुराण लिखने वाले वेद व्यासजी निषाद कन्या सत्यवती के पुत्र थे।
 


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